आपने बचपन से अब तक बहुत सी कहानी सुनी होगी। यहां तक कि आप कहानियों को सुनते-सुनते ही बड़े हुए होंगे। आपने पंचतंत्र की कहानी भी सुनी होगी और अपने आसपास के लोगों की सच्ची कहानी भी सुनी होगी।
उनके जीवन से जुड़ी कहानियां भी सुनी होगी। लेकिन आज के इस लेख पर हम आपको जो कहानी बताने वाले हैं वह भगवान और भक्त की सच्ची कहानी है इस कहानी से आपके मन में भगवान के प्रति आस्था जागृत हो उठेगी।
भगवान और भक्त की सच्ची कहानी जो आपको प्रेरणा से भर देगी
एक बात की बात है एक गांव में एक कंजूस सेठ रहा करता था। वह एक बहुत बड़ी दुकान का मालिक था। एक बार उसे किसी कार्य से बाहर जाना था तो उसने अपने बेटे को कहा कि बेटा इतना मैं बाहर से आता हूं तुम दुकान संभालो और हां किसी को भी बिना पैसों के बदले कुछ भी मत देना मैं जल्द ही लौट आऊंगा। यह कह कर सेठ जी वहां से चले गए।
जब सेठ दुकान पर नहीं था और उसका बेटा वहां बैठा हुआ था तो वहां से एक संत गुजर रहे थे। संत ने दुकान पर रुक कर सेठ के बेटे से थोड़ा सा नमक मांगा। यह संत हमेशा ही अलग-अलग जगह पर जाकर भोजन की एक-एक सामग्री लोगों से एक इकट्ठा कर लिया करते थे। लड़के ने संत के सामने नमक का डिब्बा खोल कर रख दिया संत ने उसमें से एक चम्मच नमक लिया और चल दिए।
लड़का जल्दी-जल्दी में डिब्बा बंद करना भूल गया। जब सेठ जी वापस आए तो उन्होंने नमक का डब्बा खुला हुआ देखा तो उन्होंने अपने बेटे से पूछा कि है डब्बा क्यों खुला हुआ है? तो बेटे ने जवाब दिया कि पिताजी से एक संत है जो कि तालाब पर रहते हैं वही आए थे उन्हें एक चम्मच नमक की आवश्यकता थी तो मैंने उन्हें दे दिया।
यह सुनकर सेठ बौखला गया और बोला अरे बेवकूफ लड़के इसमें नमक नहीं बल्कि जहरीला पदार्थ रखा हुआ है और इतना कहकर सेठ ने तालाब की ओर दौड़ लगा दी।जब तक सेठ जी तालाब के पास पहुंचे संत ने भगवान को खाने का भोग लगा दिया था और वह अपना खाना तैयार कर बैठ चुके थे।
सेठ जी दूर से ही चिल्लाए की संत जी रुक जाइए आप जिसे नमक समझकर लाए हैं दरअसल वह नमक नहीं जहरीला पदार्थ है आप यह भोजन नहीं खाएं। इस पर संत ने जवाब दिया कि भाई यह तो प्रसाद है इसे तो हमें ग्रहण करना ही पड़ेगा। क्योंकि हम भगवान को भोग लगा चुके हैं और भोग लगाकर खाने को छोड़ना ठीक नहीं होता है। यदि हमने भोग नहीं लगाया होता तो हम खाने को छोड़ सकते थे।
सेठ जी ने संत को बहुत समझाने का प्रयास किया लेकिन भगवान सब अच्छा करेंगे कहकर संत ने वह भोजन ग्रहण कर लिया। सेठ जी घबराए हुए पूरी रात से संत के पास बैठने का निश्चय किया। क्योंकि वह सोच रहे थे कि कहीं संत जी को कुछ हो गया तो उनकी बहुत ज्यादा बदनामी हो जाएगी। अगर रात को उनकी तबीयत खराब भी हो गई तो वह कम से कम उन्हें उठाकर वैद्य के पास तो ले जा सकते हैं।
यही सब सोचते सोचते सेठ की आंख लग गई और सुबह देखा तो संत उठ चुके हैं और नदी में स्नान कर रहे हैं । सेठ जी ने पूछा संत जी आपकी तबीयत ठीक है इस पर संत ने जवाब दिया कि सब भगवान की ही तो कृपा है। इतना कहकर वह मंदिर की ओर चले गए। जैसे ही संत मंदिर पहुंचे उन्होंने देखा कि भगवान जी के श्री विग्रह के दो भाग हुए जमीन पर पड़े हुए हैं और उनका पूरा शरीर काला पड़ा हुआ है।
सेठ जी को समझ आ गया कि क्योंकि संत का भगवान में अटूट विश्वास था इसीलिए भगवान ने खुद जहरीला भोजन ग्रहण कर भगवान अपने भक्त को भोजन के रूप में प्रसाद दिया। यह सब देखने के बाद सेठ जी अपने घर पहुंचे और अपना सारा कारोबार अपने पुत्र को सौंप कर संत की शरण में जाकर भगवान की भक्ति करने लगे।
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि भगवान में विश्वास रखने से सभी कार्य अच्छे होते हैं हम जो भी कार्य करें वह पूरा मन लगाकर करना चाहिए फिर वह चाहे पढ़ाई हो या फिर भगवान की भक्ति।
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निष्कर्ष
आशा करते हैं भगवान और भक्त की सच्ची कहानी आपको अवश्य पसंद आई होगी और आपको इस कहानी को पढ़ने के बाद भगवान में अटूट विश्वास जग गया होगा।
आप सदैव सच्चे रास्ते पर चलने को तैयार होंगे और आप भगवान में अपनी आस्था पूरी तरह से बनाए रखेंगे। यदि आप चाहते हैं कि हम इसी प्रकार की और कहानी लेकर आए तो आप हमें कमेंट सेक्शन के माध्यम से बता सकते हैं।