भारत में रह रहे आधे से ज्यादा लोग गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करते हैं । वास्तव में ऐसे लोगों को अमीर मान लिया जाता है जिन्हें खाने के लिए भोजन और रहने के लिए छत मिल रही है।
हमारे देश में जीने के इन्हीं माध्यमों के आधार पर गरीबी और अमीरी को तोला जाता है लेकिन वास्तव में गरीबी क्या है यह उन लोगों से पूछिए जो गरीबी को एक अभिशाप की तरह झेल रहे हैं जी हां गरीबी एक अभिशाप ही तो है।
गरीबी–एक अभिशाप
यदि गरीबी को एक उदाहरण के माध्यम से समझने का प्रयास किया जाए तो गरीब वह किसान है जो टूटी हुई खाट पर अपनी छोटी सी झोपड़ी के बाहर पड़ा हुआ है क्योंकि इस वर्ष वर्षा न होने के कारण उसकी फसल नहीं हो पाई थी और जो थोड़े बहुत पैसे बचे थे वह भी लोन और बच्चों की पढ़ाई के खर्चे में चला गया है।

अब नौबत यहां तक आ गई है कि बच्चों की फीस भरने तक का रुपया नहीं बचा है एक तरफ यही चिंता सताए जा रही है कि कहीं उसके बच्चे को भी उसकी तरह भविष्य में दाने-दाने को मोहताज न हो पड़े कहीं उसका बच्चा भी अशिक्षित ना रह जाए।
तो दूसरी ओर घर में खाने को अन्न का दाना नहीं है ऐसे में वह गरीब किसान उधार लेने पर मजबूर हो गया है और सबसे बड़ी मुसीबत तो यह है कि किसान इतना पढ़ा लिखा भी नहीं है कि अपने ब्याज का हिसाब ही लगा सके यही कारण है कि समाज में रह रहे अमीर लोग उस पर दिन प्रतिदिन दुगना ब्याज लगाकर उसके अगले साल की फसल को पहले ही अपने हिस्से में कर ले रहे हैं।
गरीब ज्यादा झेल रहा है गरीबी की मार
आपने यह कहावत तो जरूर सुनी होगी कि अमीर और अमीर होता जा रहा है तो गरीब और गरीबी की कगार पर जा रहा है। वास्तव में गरीबी की मार तो हर कोई झेल रहा है लेकिन फर्क सिर्फ इतना है कि जो व्यक्ति अमीर है वह इसे आसानी से झेल का रहा है और जो व्यक्ति गरीब है वह इसके चक्कर में कर्ज के जाल में फसता जा रहा है।

ऐसा लगता है मानो गरीबी एक अभिशाप के रूप में किसी व्यक्ति के पीछे पड़ गई है मानो उसके कोई पुराने जन्मों का फल वह आज गरीब होकर भुगत रहा हो।
भारत में ऐसे कितने ही गरीब है जो दो वक्त की रोटी खाए बिना रोज रात को सो जाते हैं और वह सुबह इस उम्मीद में जागते हैं कि शायद आज उन्हें दो वक्त की ना सही दो रोटी ही नसीब हो जाए लेकिन सभी गरीबों के साथ ऐसा नहीं हो रहा है।
गरीबी बन रही आत्महत्या का कारण
ऐसे कितने किसान है जो प्रत्येक वर्ष गरीबी के चलते आत्महत्या कर लेते हैं क्योंकि वह कर्ज में इतनी बुरी तरह डूब चुके होते हैं कि उन्हें अपना कर्ज उतारने का कोई रास्ता नजर नहीं आता।

ऐसे में उन्हें यदि मौसम की मार भी झेलनी पड़ जाए और किसी वर्ष उनकी फसल ना हो तो उनके भूखे रहने तक की नौबत आ जाती है और कोई भी व्यक्ति अपनी बीवी बच्चों को अपने सामने भूखा मरता हुआ नहीं देख सकता।
ऐसे में वह चाहता है कि वह खुद की जिंदगी खत्म कर दे। यही कारण है कि बहुत से किस हर साल आत्महत्या कर रहे हैं। लेकिन क्या मृत्यु गरीबों को खत्म करने का एक रास्ता साबित हो सकती है?
जी नहीं आपको इस गरीबी से लड़ना होगा आपको अपने बच्चों को पढ़ाना लिखाना होगा और उन्हें इस काबिल बनाना होगा कि उन्हें आपके जैसा जीवन जीने पर मजबूर ना होना पड़े।
आपने यह कहावत तो अवश्य सुनी होगी कि किसी भी मुसीबत से भागना उस समस्या का हल कभी भी नहीं होता हम मानते हैं कि कई बार आपको गरीबी एक अभिशाप की तरह दिखने लगती है आप चाहते हैं कि आखिर हम इतने गरीब क्यों है।
लेकिन हम आपको यहां पर यह बात बहुत स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि कई महान व्यक्तियों ने यह बात कही है कि आप गरीब घर में पैदा हुए इसमें आपकी कोई गलती नहीं है लेकिन आप मृत्यु तक गरीब ही रहते हैं तो यह यकीनन आपकी ही गलती है।
आपकी ही ओर से कोई कमी रही है और हो सकता है कि आपने यह अपनी इस गरीबी को मिटाने के लिए कोई प्रयास नहीं किए हैं इसीलिए अपने जीवन को इस उद्देश्य के साथ व्यतीत करें कि आप जिन हालातो में पैदा हुए आपको अपने आने वाले बच्चों को उन हालात में पैदा नहीं करना है आपको गरीबी के इस अभिशाप को जड़ से मिटा देना है।
निष्कर्ष – Conclusion
गरीब वह नहीं जिसके पास खाने के लिए दो वक्त की रोटी नहीं है। गरीब वह भी नहीं जिसके पास रहने के लिए छत नहीं है। गरीब तो वह है जिसके मन में दया भाव नहीं है। यदि इन्हीं शब्दों को गरीबी की परिभाषा मानकर अपना लिया जाए तो हमारे विचार में यह बहुत ज्यादा गलत होगा। वास्तव में गरीब तो वह व्यक्ति है जो कड़ाके की ठंड में फुटपाथ पर बिना कपड़ों के सोने को मजबूर हैं इसके पास कोई रोजगार नहीं है।